Bhagavad Gita Chapter 11 Verse 50 — Meaning & Life Application
Sanskrit Shloka (Original)
सञ्जय उवाच | इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः | आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा ||११-५०||
Transliteration
sañjaya uvāca . ityarjunaṃ vāsudevastathoktvā svakaṃ rūpaṃ darśayāmāsa bhūyaḥ . āśvāsayāmāsa ca bhītamenaṃ bhūtvā punaḥ saumyavapurmahātmā ||11-50||
Word-by-Word Meaning
📖 Translation
11.50 Sanjaya said Having thus spoken to Arjuna, Krishna again showed His own form and the great Soul (Krishna), assuming His gentle form, consoled him (Arjuna) who was terrified.
।।11.50।। संजय ने कहा -- भगवान् वासुदेव ने अर्जुन से इस प्रकार कहकर, पुन: अपने (पूर्व) रूप को दर्शाया, और फिर, सौम्यरूप महात्मा श्रीकृष्ण ने इस भयभीत अर्जुन को आश्वस्त किया।।
How to Apply This Verse in Modern Life
💼 At Work & Career
In leadership, after presenting a bold, perhaps intimidating, vision or during a period of high organizational stress, a true leader must demonstrate empathy. They should 'return to a gentle form' by simplifying complex messages, offering reassurance, and providing clear, supportive guidance to alleviate team members' anxieties and restore their confidence and sense of stability.
🧘 For Stress & Anxiety
When overwhelmed by intense fear, anxiety, or shocking experiences, it is vital to consciously seek out sources of comfort and stability. This might involve grounding techniques, connecting with trusted loved ones, or engaging in self-compassion practices to soothe the 'terrified' self and regain a sense of peace and mental equilibrium.
❤️ In Relationships
In moments when a loved one is deeply distressed, overwhelmed, or fearful, the most compassionate response is to offer unconditional comfort and reassurance. Adapt your approach, speaking gently, listening actively, and providing a calming presence to help them 'return to their gentle form' and feel secure and understood.
When to Chant/Recall This Verse
Solves These Life Problems
Key Message in One Line
“Even after the most profound or terrifying revelations, divine compassion offers solace, guiding us back to peace through reassurance and empathetic understanding.”
🕉️ Council of Sages
Compare interpretations from revered Acharyas and scholars
🌍 English Interpretations
Swami Sivananda
11.50 इति thus? अर्जुनम् to Arjuna? वासुदेवः Vaasudeva? तथा so? उक्त्वा having spoken? स्वकम् His own? रूपम् form? दर्शयामास showed? भूयः again? आश्वासयामास consoled? च and? भीतम् who was terrified? एनम् him? भूत्वा having become? पुनः again? सौम्यवपुः of gentle form? महात्मा the greatsouled One.Commentary His own form His form as the son of Vasudeva.
Shri Purohit Swami
11.50 Sanjaya continued: "Having thus spoken to Arjuna, Lord Shri Krishna showed Himself again in His accustomed form; and the Mighty Lord, in gentle tones, softly consoled him who lately trembled with fear.
Dr. S. Sankaranarayan
11.50. Having said to Arjuna as above, Vasudeva revealed His own tiny form; assuming His gentle body once again, the Mighty Soul (Krsna) consoled the frightened Arjuna.
Swami Adidevananda
11.50 Sanjaya said Having spoken thus to Arjuna, Sri Krsna revealed to him once more His own form. The Mahatman, assuming again a benign form, reassured him who had been struck with awe.
Swami Gambirananda
11.50 Sanjaya said Thus, having spoken to Arjuna in that manner, Vasudeva showed His own form again. And He, the exalted One, reassured this terrified one by again becoming serene in form.
🇮🇳 Hindi Interpretations
Swami Chinmayananda
।।11.50।। यहाँ संजय अन्ध वृद्ध राजा से इस बात की पुष्टि करता है कि भगवान् ने अपने दिये हुए वचन के अनुसार पुन सौम्य रूप को धारण किया। वासुदेव शब्द से यह स्पष्ट करते हैं कि पूर्व का रूप कौन सा था वह रूप जिसमें श्रीकृष्ण ने वसुदेव के घर जन्म लिया था। भगवान् ने पुन? अर्जुन के परिचित मित्र और गोपियों के घनश्याम कृष्ण का सौम्य और प्रिय रूप धारण किया। भयभीत अर्जुन को वे मधुर वचनों से आश्वस्त करते हैं।यहाँ फिर एक बार हम संजय के शब्दों में उसकी व्याकुलता देखते हैं। वह चाहता है कि धृतराष्ट्र यह देखें कि श्रीकृष्ण ही विश्वेश्वर हैं और वे पाण्डवों के साथ हैं। किन्तु कैसे क्या कभी एक अन्धा व्यक्ति देख सकता हैफिर रणभूमि का दृश्य है। संजय अर्जुन के शब्दों में सूचित करता है कि
Swami Ramsukhdas
।।11.50।। व्याख्या--'इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः'--अर्जुनने जब भगवान्से चतुर्भुजरूप होनेके लिये प्रार्थना की, तब भगवान्ने कहा कि मेरे इस विश्वरूपको देखकर तू व्यथित और भयभीत मत हो। तू प्रसन्न मनवाला होकर मेरे इस रूपको देख (11। 49)। भगवान्के इसी कथनको सञ्जयने यहाँ 'इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा' पदोंसे कहा है। 'तथा' कहनेका तात्पर्य है कि जिस प्रकार कृपाके परवश होकर भगवान्ने अपना विश्वरूप दिखाया था, उसी प्रकार कृपाके परवश होकर भगवान्ने अर्जुनको चतुर्भुजरूप दिखाया। इस चतुर्भुजरूपको देखनेमें अर्जुनकी कोई साधना हो, योग्यता हो -- यह बात नहीं है, प्रत्युत भगवान्की कृपाहीकृपा है। 'भूयः' कहनेका तात्पर्य है, जिस देवरूप(चतुर्भुजरूप) को अर्जुनने विश्वरूपके अन्तर्गत देखा था (11। 15? 17) और जिसे दिखानेके लिये अर्जुनने प्रार्थना की थी (11। 45 46)? वही रूप भगवान्ने फिर दिखाया। 'आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा'-- भगवान् श्रीकृष्णने अर्जुनको पहले चतुर्भुजरूप दिखाया। फिर अर्जुनकी प्रसन्नताके लिये महात्मा भगवान् श्रीकृष्ण पुनः द्विभुजरूप-(मनुष्यरूप-) से प्रकट हो गये और उन्होंने विश्वरूपको देखनेसे भयभीत हुए अर्जुनको आश्वासन दिया।भगवान् श्रीकृष्ण द्विभुज थे या चतुर्भुज? इसका उत्तर है कि भगवान् हरदम द्विभुजरूपसे ही रहते थे, पर समय-समयपर जहाँ उचित समझते थे, वहाँ चतुर्भुज-रूप हो जाते थे।दसवें और ग्यारहवें अध्यायमें भगवान्ने अपनी विभूतियोंका वर्णन करनेमें भी अपनी महत्ता, प्रभाव सामर्थ्यको बताया है और अपने अत्यन्त विलक्षण विश्वरूपको दिखानेमें भी अपने प्रभावको बताया है। अगर मनुष्य भगवान्के ऐसे महान् प्रभावको जान ले अथवा मान ले, तो उसका संसारमें आकर्षण नहीं रहे। वह सदाके लिये संसार-बन्धनसे छूट जाय।अर्जुनपर भगवान्की कितनी अद्भुत कृपा है कि भगवान्ने पहले विश्वरूप दिखाया, फिर देवरूप (चतुर्भुज-रूप) दिखाया और फिर मानुषरूप (द्विभुजरूप) हो गये। इसके साथ-साथ भगवान्ने हमलोगोंपर भी कितनी अलौकिक विलक्षण कृपा की है कि जहाँ-कहीं जिस किसी विशेषताको लेकर हमारा मन चला जाय, वहीं हम भगवान्का चिन्तन कर सकते हैं और भगवान्के विश्वरूपका पठन-पाठन, चिन्तन कर सकते हैं। इस भयंकर समयमें हमें भगवान्की विभूतियों तथा विश्वरूपके चिन्तन आदिका जो मौका मिला है, इसमें हमारा उद्योग, योग्यता कारण नहीं है, प्रत्युत भगवान्की कृपा ही कारण है। भगवान्की इस कृपाको देखकर,हमें प्रसन्न हो जाना चाहिये। इन विभूतियोंको सुनने और विश्वरूपके चिन्तन-स्मरणका मौका तो उस समय भी सञ्जय आदि बहुत थोड़े लोगोंको ही मिला था। वही मौका आज हमें प्राप्त हुआ है। अतः ऐसे मौकेको व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिये। सम्बन्ध--भगवान्ने मनुष्यरूप होकर जब अर्जुनको आश्वासन दिया, तब अर्जुन बोले --
Swami Tejomayananda
।।11.50।। संजय ने कहा -- भगवान् वासुदेव ने अर्जुन से इस प्रकार कहकर, पुन: अपने (पूर्व) रूप को दर्शाया, और फिर, सौम्यरूप महात्मा श्रीकृष्ण ने इस भयभीत अर्जुन को आश्वस्त किया।।
📜 Sanskrit Commentaries
Sri Madhavacharya
।।11.50।।स्वकं रूपं तु भ्रान्तिप्रतीत्या। अन्यथा तदपि स्वकमेव। प्रमाणानि तूक्तानि पुरस्तात्।
Sri Anandgiri
।।11.50।।तदिदं वृत्तं राज्ञे सूतो निवेदितवानित्याह -- संजय इति। तथाभूतं वचनं मया प्रसन्नेनेत्यादिचतुर्भुजं रूपं। किं तस्य रूपस्य परिचितपूर्वस्य प्रदर्शनेन प्रसन्नदेहत्वेन चार्जुनं प्रत्याश्वासनं भगवतो युक्तमित्यत्र हेतुमाह -- महात्मेति।
Sri Vallabhacharya
।।11.50।।एवं सञ्जय उवाच -- इतीति। स्वकं पूर्वं प्रदर्शितरूपं चतुर्भुजं दर्शयामास। तथापि सख्यसारथ्यादिकमनुचितं मत्वा रथादुत्तीर्य स्तोतुकामं पार्थमवलोक्य पुनः सौम्यवपुर्द्विभुज एव लोके सम्मत -- (संभवत्) -- स्वरूप एव भक्तप्रार्थनया भूत्वा पुरुषोत्तमोऽचिन्त्ययोगेश्वरो विभुर्महात्मा भीतमेनं आश्वासयामास। अत्र सौम्यपदमेव सर्वापेक्षया भयाभावसूचकं द्विभुजरूपं प्रत्याययति। अन्यथाभूयः पुनश्च इति पौनरुक्त्यं स्यात्। वदति चाग्रेदृष्ट्वेदं मानुषं रूपं [11।51] इति।
Sridhara Swami
।।11.50।।एवमुक्त्वा प्राक्तनमेव रूपं दर्शितवानिति संजय उवाच -- इतीति। श्रीवासुदेवोऽर्जुनमेवमुक्त्वा यथा पूर्वमासीत्तथैव किरीटादियुक्तं चतुर्भुजं स्वीयं रूपं पुनर्दर्शयामास। एनमर्जुनं भीतमेव प्रसन्नवपुर्भूत्वा पुनरप्याश्वासितवान्। महात्मा विश्वरूपः कृपालुरिति वा।