Bhagavad Gita Chapter 10 Verse 29 — Meaning & Life Application

Source: Bhagavad GitaTheme: Divine Immanence

Sanskrit Shloka (Original)

अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् | पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ||१०-२९||

Transliteration

anantaścāsmi nāgānāṃ varuṇo yādasāmaham . pitṝṇāmaryamā cāsmi yamaḥ saṃyamatāmaham ||10-29||

Word-by-Word Meaning

अनन्तःAnanta
and
अस्मि(I) am
नागानाम्among Nagas
वरुणःVaruna
यादसाम्among watergods
अहम्I
पितृ़णाम्among the Pitris or ancestors
अर्यमाAryaman
and
अस्मि(I) am
यमःYama
संयमताम्among governors

📖 Translation

English

10.29 I am Ananta among the Nagas; I am Varuna among water-deities; Aryaman among the Manes I am; I am Yama among the governors.

🇮🇳 हिंदी अनुवाद

।।10.29।। मैं नागों में अनन्त (शेषनाग) हूँ और जल देवताओं में वरुण हूँ; मैं पितरों में अर्यमा हँ और नियमन करने वालों में यम हूँ।।

How to Apply This Verse in Modern Life

💼 At Work & Career

Strive for excellence in your chosen field, aiming to be the leading example ('Ananta among Nagas') through dedication and skill. Embrace leadership roles with integrity and a sense of justice, much like 'Yama among governors', ensuring fairness and accountability in your professional conduct.

🧘 For Stress & Anxiety

Find peace in recognizing the cosmic order and the underlying principles of justice and balance that govern the universe, as embodied by 'Yama'. This can reduce anxiety about chaos or unfairness. Connect with the divine in nature and its elements ('Varuna among water-deities') for solace and a sense of calm amidst life's turbulence.

❤️ In Relationships

Take responsibility for your role in fostering healthy relationships, acting with fairness, integrity, and principled conduct ('Yama among governors'). Honor and respect your elders and ancestry ('Aryaman among the Manes'), acknowledging the foundations and wisdom they provide, and strive to be a reliable and excellent presence for those you care about.

When to Chant/Recall This Verse

Solves These Life Problems

Key Message in One Line

Recognize the divine in all exemplary forms and forces of order; strive for excellence and accountability as reflections of the cosmic principles that govern the universe.

🕉️ Council of Sages

Compare interpretations from revered Acharyas and scholars

🌍 English Interpretations

Swami Sivananda

10.29 अनन्तः Ananta? च and? अस्मि (I) am? नागानाम् among Nagas? वरुणः Varuna? यादसाम् among watergods? अहम् I? पितृ़णाम् among the Pitris or ancestors? अर्यमा Aryaman? च and? अस्मि (I) am? यमः Yama? संयमताम् among governors? अहम् I.Commentary Ananta is the king of hooded serpents or cobras. He is firecoloured.Varuna is the king of the watergods.Waterdeities The gods connected with waters.Aryaman is the king of the manes.I am Yama? the witness of the acts of all living beings? who keeps account of the good and bad actions of the people.

Shri Purohit Swami

10.29 I am the King-python among snakes, I am the Aqueous Principle among those that live in water, I am the Father of fathers, and among rulers I am Death.

Dr. S. Sankaranarayan

10.29. Of the snakes, I am Ananta; of the water-beings (water-deities), I am varuna; of the manes, I am Aryaman; of the controllers, I am Yama (the Death-god).

Swami Adidevananda

10.29 Of snakes, I am Ananta. Of aatic-beings I am Varuna. Of manes, I am Aryama. Of subduers, I am Yama.

Swami Gambirananda

10.29 Among snakes I am Ananta, and Varuna among gods of the waters. Among the manes I am Aryama, and among the maintainers of law and order I am Yama (King of death).

🇮🇳 Hindi Interpretations

Swami Chinmayananda

।।10.29।। मैं नागों में शेषनाग (अनन्त) हूँ अनेक फणों वाले सर्प नाग कहलाते हैं। उन नागों में सहस्र फनों वाले शेषनाग को भगवान् विष्णु की शय्या कहा गया है जिस पर वे अपनी योगनिद्रा में विश्राम या शयन करते हैं। यहाँ श्रीकृष्ण कहते हैं कि? अनेक फणों वाले नागों में? वे सर्वाधिक शक्तिशाली और दिव्य नाग हैं? क्योंकि वे एकमात्र अधिष्ठान है जिस पर सृष्टकर्ता ब्रह्मा और पालनकर्ता विष्णु विश्राम और कार्य करते हैं।मैं जल देवताओं में वरुण हूँ पंच महाभूतों में चौथे तत्त्व जल का अधिष्ठाता देवता वरुण है। वैदिक काल में दृश्य जगत् की प्राकृतिक शक्तियों को दैवी आकृति प्रदान कर उनकी पूजा और उपासना की जाती थी। यह तो काफी समय पश्चात् हमने देवताओं के मानवीकरण की पौराणिक परम्परा प्रारम्भ की और फिर हम धार्मिक मतभेदों की कीचड़ और सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों में फँस गये। जेरुसलम के मसीहा? वृन्दावन के गोपबाल और मक्का के पैगम्बर के अज्ञानी भक्त आपस में लड़ने लगे। वरुण का शरीर अर्धमत्स्य और अर्धमनुष्य का वर्णन किया गया है जो प्राय अरनाल्ड के मरमन (मत्स्यपुरुष) के समान है वरुण समुद्र का शासक और जल का अधिष्ठाता देवता है।मैं पितरों में अर्यमा हूँ हिन्दू धर्म में? मृत्यु भी? जीवन का ही एक अनुभव है। इसमें सूक्ष्म शरीर सदैव के लिए अपने वर्तमान निवास स्थान रूपी स्थूल देह को त्याग कर चला जाता है। इस सूक्ष्म शरीर (या जीव) का अपना अलग अस्तित्व बना रहता है? जिसे पितर कहते हैं।ये पितर (अथवा प्रेतात्माएं) एक साथ किसी लोक विशेष में रहते हैं? जिसे पितृलोक कहा जाता है। इसके पूर्व हम बारह आदित्यों के संबंध में वैदिक सिद्धांत को देख चुके हैं? जो बारह महीनों के अधिष्ठाता हैं। उनमें से एक अर्यमा नामक आदित्य को इस पितृलोक का शासक कहा गया है।मैं नियामकों में यम हूँ यमराज मृत्यु के देवता हैं। भारत में? हम भयंकरता उदासी और दुखान्त को भी पूजते हैं? क्योंकि हम जानते हैं कि ईश्वर शुभ और अशुभ आनन्दप्रद और दुखप्रद सभी वस्तुओं का अधिष्ठान है। हम समझौते के किसी ऐसे सिद्धांत से सन्तुष्ट नहीं होते? जिसमें हम ईश्वर का उन वस्तुओं से कोई संबंध स्वीकार नहीं करते? जो हमें अप्रिय हों।हमें प्रिय प्रतीत हो या न हो? मृत्यु तत्त्व ही हमारे जीवन का नियन्त्रक और नियामक है। मृत्यु ही? प्रत्येक क्षण? रचनात्मक विकास के लिए प्रगतिशील क्षेत्र तैयार करती है। युवावस्था की अभिव्यक्ति के लिए बाल्यावस्था का अन्त होना आवश्यक है। महाविद्यालय में प्रवेश पाने के लिए उच्चतर माध्यमिक विद्यालय को त्यागना पड़ता है। प्रगति अपने आप में जीवन का मात्र आंशिक चित्र और जीवन की सम्पूर्ण गति का एकांगी दर्शन है। प्रत्येक विकास के पूर्व नाश अवश्य होता है। इस प्रकार? नाश का रचनात्मक प्रगति में योगदान मृत्यु की सृजनात्मक कला कहलाती है।किसी भौतिक वस्तु की वर्तमान अवस्था का नाश किये बिना नवीन वस्तु की निर्मिति नहीं की जा सकती। भौतिक जगत् के इस नियम को समझने से ही हम इस युक्तिसंगत निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। निरीक्षित नियम यह है कि कोई दो वस्तुएँ एक ही समय एक ही स्थान पर साथसाथ नहीं रह सकती हैं। जब एक चित्रकार पट पर फूल का चित्र बना रहा होता है? तब वह न केवल विभिन्न रंगों का प्रयोग ही करता है? वरन् उसकी रचनात्मक कला निरन्तर उस पट के सतह की पूर्वावस्था को नष्ट भी करती जाती है। इस प्रकार? जब जीवन को उसकी सम्पूर्णता में देखा जाता है? तब ज्ञात होता है कि मृत्यु के देवता का भी उतना ही महत्व है? जितना कि सृष्टि के देवता का।सृष्टि के साथसाथ उसी गति से यदि मृत्यु बुद्धिमत्तापूर्वक कार्य नहीं कर रही होती? तो जगत् में वस्तुओं की असीम और अनियन्त्रित बाढ़ आ गई होती। उस स्थिति में मात्र वस्तुओं की संख्या एवं परिमाण के कारण ही जीवन असंभव हो गया होता। यदि मृत्यु नहीं होती? तो हमारे पूर्व के असंख्य पीढ़ियों के प्रपितामह आदि अभी भी हमारे दो कमरों वाले घरों में रह रहे होते जब कुछ ही मात्रा में जनसंख्या में वृद्धि होने पर प्रकृति का सन्तुलन और जगत् की राजनीतिक शान्ति अस्तव्यस्त हो जाती है? यदि सृष्टिकर्ता के समान मृत्यु देवता भी कार्य नहीं कर रहे होते? तो जगत् की क्या स्थिति होती निश्चय ही? सभी नियामकों में यमराज प्रमुख्ा हैं और यह दिया हुआ उदाहरण अत्यन्त उपयुक्त एवं अनन्य है।भगवान् आगे कहते हैं

Swami Ramsukhdas

।।10.29।। व्याख्या--'अनन्तश्चास्मि नागानाम्'--शेषनाग सम्पूर्ण नागोंके राजा हैं (टिप्पणी प0 560)। इनके एक हजार फण हैं। ये क्षीरसागरमें सदा भगवान्की शय्या बनकर भगवान्को सुख पहुँचाते रहते हैं। ये अनेक बार भगवान्के साथ अवतार लेकर उनकी लीलामें शामिल हुए हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।'वरुणो यादसामहम्'--वरुण सम्पूर्ण जल-जन्तुओंके तथा जल-देवताओंके अधिपति हैं और भगवान्के भक्त हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।'पितृ़णामर्यमा चास्मि'--कव्यवाह, अनल, सोम आदि सात पितृगण हैं। इन सबमें अर्यमा नामवाले पितर मुख्य हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।'यमः संयमतामहम्'--प्राणियोंपर शासन करनेवाले राजा आदि जितने भी अधिकारी हैं, उनमें यमराज मुख्य हैं। ये प्राणियोंको उनके पाप-पुण्योंका फल भुगताकर शुद्ध करते हैं। इनका शासन न्याय और धर्मपूर्वक होता है। ये भगवान्के भक्त और लोकपाल भी हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।इन विभूतियोंमें जो विलक्षणता दीखती है, वह इनकी व्यक्तिगत नहीं है। वह तो भगवान्से ही आयी है और भगवान्की ही है। अतः इनमें भगवान्का ही चिन्तन होना चाहिये।

Swami Tejomayananda

।।10.29।। मैं नागों में अनन्त (शेषनाग) हूँ और जल देवताओं में वरुण हूँ; मैं पितरों में अर्यमा हँ और नियमन करने वालों में यम हूँ।।

📜 Sanskrit Commentaries

Sri Madhavacharya

।।10.29।।Sri Madhvacharya did not comment on this sloka.,

Sri Anandgiri

।।10.29।।प्रजनयतीति व्युत्पत्तिमाश्रित्याह -- प्रजनयितेति। सर्पा नागाश्च जातिभेदाद्भिद्यन्ते।

Sri Vallabhacharya

।।10.29।।अनन्त इति। शेषोऽहम्। वरुणोऽधिकृतो लोकपालः। पितृ़णां मुख्योऽर्यमाऽहम्। श्राद्धान्नभोजी भगवत्स्वरूपतया श्राद्धे तदादिः पितृगणो यजनीयश्चिन्तनीयो भगवदीयेनेति भावः।

Sridhara Swami

।।10.29।। अनन्त इति। नागानां निर्विषाणां राजा अनन्तः शेषोऽस्मि। यादसां जलचराणां राजा वरुणोऽस्मि। पितृ़णां राजा अर्यमास्मि। संयमतां नियमनं कुर्वतां मध्ये यमोऽस्मि।

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