Bhagavad Gita Chapter 10 Verse 26 — Meaning & Life Application
Sanskrit Shloka (Original)
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः | गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ||१०-२६||
Transliteration
aśvatthaḥ sarvavṛkṣāṇāṃ devarṣīṇāṃ ca nāradaḥ . gandharvāṇāṃ citrarathaḥ siddhānāṃ kapilo muniḥ ||10-26||
Word-by-Word Meaning
📖 Translation
10.26 Among all the trees ( I am) the Peepul; among the divine sages, I am Narada; among Gandharvas, Chitraratha; among the perfected, the sage Kapila.
।।10.26।। मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) हूँ और देवर्षियों में नारद हूँ; मैं गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ।।
How to Apply This Verse in Modern Life
💼 At Work & Career
Strive for mastery and excellence in your chosen field, aiming to be a 'peak' performer or contributor. Recognize and learn from leaders, mentors, and exemplary figures in your profession, viewing their superior qualities as reflections of a higher order. Connect your work to a deeper purpose, finding the inherent value and longevity ('the Ashvattha') in your contributions.
🧘 For Stress & Anxiety
Cultivate a sense of awe and appreciation for the magnificent aspects of life, nature, or art; recognizing the divine in the extraordinary can provide perspective and calm amidst daily anxieties. Seek out wisdom and guidance from enlightened sources or serene environments ('the sage Kapila' or 'Peepul tree') to ground yourself and find mental clarity. Focus on the 'best' within your own character—your strengths, virtues, and moments of profound insight—to build inner resilience.
❤️ In Relationships
Appreciate the unique, excellent, and positive qualities in others, discerning 'the divine' spark or best attributes in them, thereby fostering deeper connection and respect. Strive to be an exemplary friend, partner, or family member, embodying virtues like wisdom, compassion, or reliability ('the Kapila' or 'Narada' in your relationships). Seek out and cultivate relationships that foster growth, wisdom, and mutual respect, providing a stable and nurturing environment.
When to Chant/Recall This Verse
Solves These Life Problems
Key Message in One Line
“The divine manifests as the pinnacle of excellence, wisdom, and purity in all categories of existence; recognize and reverence these highest expressions to perceive God's glorious presence and find inspiration.”
🕉️ Council of Sages
Compare interpretations from revered Acharyas and scholars
🌍 English Interpretations
Swami Sivananda
10.26 अश्वत्थः Asvattha? सर्ववृक्षाणाम् among all trees? देवर्षीणाम् among Divine Rishis? च and? नारदः Narada? गन्धर्वाणाम् among Gandharvas? चित्ररथः Chitraratha? सिद्धानाम् among the Siddhas or the perfected? कपिलः Kapila? मुनिः sage.Commentary Devarshis are gods and at the same time Rishis or seers of Mantras.Siddhas are the perfected ones those who at their very birth attained without any effort Dharma (virtue)? Jnana (knowledge of the Self)? Vairagya (dispassion) and Aisvarya (lordship).Muni is one who does Manana or reflection one who meditates.
Shri Purohit Swami
10.26 Of trees I am the sacred Fig-tree, of the Divine Seers Narada, of the heavenly singers I am Chitraratha, their Leader, and of sages I am Kapila.
Dr. S. Sankaranarayan
10.26. Of all trees, I am the Pipal-tree; and of the divine seers, Narada; of the Gandharvas (the celestial musicians), Citraratha; of the perfected ones, the sage Kapila.
Swami Adidevananda
10.26 Of trees I am the Asvattha. Of celestial seers, I am Narada. Of the Gandharvas I am Citraratha. Of the perfected, I am Kapila.
Swami Gambirananda
10.26 Among all trees (I am) the Asvatha (peepul), and Narada among the divine sages. Among the dandharvas [A class of demigods regarded as the musicians of gods.] (I am) Citraratha; among the perfected ones, the sage Kapila.
🇮🇳 Hindi Interpretations
Swami Chinmayananda
।।10.26।। मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ वृक्ष हूँ परिमाण और आयुमर्यादा दोनों की दृष्टि से अश्वत्थ अर्थात् पीपलवृक्ष को सर्वव्यापक और नित्य माना जा सकता है? क्योंकि वह प्राय कई शताब्दियों तक जीवित रहता है। हिन्दू लोग उसकी पूजा करते हैं। उसके साथ दिव्यता और पवित्रता की भावना जुड़ी हुई है। वैदिक परम्परा से परिचित लोगों को अश्वत्थ शब्द उपनिषदों में वर्णित संसार वृक्ष के रूपक का स्मरण भी कराता है। गीता के भी आगे आने वाले एक अध्याय में अश्वत्थ वृक्ष का वर्णन मिलता है? जो इस दृश्यमान मिथ्या जगत् का प्रतीक रूप है।मैं देवर्षियों में नारद हूँ देवर्षि नारद हमारी पौराणिक कथाओं के एक प्रिय पात्र हैं। नारद का वर्णन हरिभक्त के रूप में किया गया है। वे न केवल देवर्षियों में महान् हैं? वरन् वे प्राय इस पृथ्वीलोक पर अवतरित होकर लोगों के मन में गर्व अभिमान दूर करने के लिए जानबूझकर उनकी आपस में कलह करवाते हैं और अन्त में सबको भक्ति का मार्ग दर्शाकर स्वर्ग सुख की प्राप्ति कराते हैं। सम्भवत? श्रीकृष्ण स्वयं धर्मोद्धारक और धर्मप्रचारक होने के नाते नारद जी के प्रति उनके प्रचार के उत्साह के कारण आदर भाव रखते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार अनेक अधर्मियों को धर्म मार्ग में परिवर्तित कर नारद जी ने उन्हें मोक्ष दिलाया है। भगवान् श्रीकृष्ण और नारद दोनों की ही समान महत्वाकांक्षा होने से दोनों के मध्य स्नेह होना स्वाभाविक ही है।मैं गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ गन्धर्वगण स्वर्ग के गायक वृन्द हैं? जो कला और संगीत के द्वारा देवताओं का मनोरंजन करते हैं। स्वर्ग के मनोरंजन के वे सितारे हैं। उन गन्धर्वों में सर्वश्रेष्ठ हैं चित्ररथ।मैं सिद्धों में कपिल मुनि हूँ ये सिद्ध पुरुष जादूगर नहीं हैं। इस संस्कृत शब्द का अर्थ है जिस पुरुष ने अपने लक्ष्य (साध्य) को सिद्ध (प्राप्त) कर लिया है। अत आत्मानुभवी पुरुष ही सिद्ध कहलाता है। ऐसे सिद्ध पुरुषों में भगवान् कहते हैं कि? मैं कपिल मुनि हूँ। मुनि शब्द से उस पारम्परिक धारणा को बनाने की आवश्यकता नहीं है? जिसमें मुनि को एक बृद्ध? पक्व केश वाले? प्राय निर्वस्त्र और साधारणत अगम्य स्थानों में विचरण करने वाले पुरुष के रूप में अज्ञानी चित्रकारों के द्वारा चित्रित किया जाता है। उसके विषय में ऐसी धारणा प्रचलित हो गई है कि वह एक सामान्य नागरिक के समान न होकर जंगलों का कोई विचित्र प्राणी है? जो विचित्र्ा आहार पर जीता है। वस्तुत मुनि का अर्थ है मननशील अर्थात् तत्त्वचिन्तक पुरुष। वह शास्त्रीय कथनों के गूढ़ अभिप्रायों पर सूक्ष्म? गम्भीर मनन करता है। ऐसे विचारकों में मैं कपिल मुनि हूँ।सांख्य दर्शन के प्रणेता के रूप में कपिल मुनि सुविख्यात हैं? जिनका संकेत यहाँ किया गया है। अनेक सिद्धांतों पर गीता का सांख्य दर्शन के साथ मतैक्य है। अत भगवान् यहाँ कपिल मुनि को अपनी विभूति की सम्मानित प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं।पुन?
Swami Ramsukhdas
।।10.26।। व्याख्या--'अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम्'--पीपल एक सौम्य वृक्ष है। इसके नीचे हरेक पेड़ लग जाता है, और यह पहाड़, मकानकी दीवार, छत आदि कठोर जगहपर भी पैदा हो जाता है। पीपल वृक्षके पूजनकी बड़ी महिमा है। आयुर्वेदमें बहुत-से रोगोंका नाश करनेकी शक्ति पीपल वृक्षमें बतायी गयी है। इन सब दृष्टियोंसे भगवान्ने पीपलको अपनी विभूति बताया है। 'देवर्षीणां च नारदः'-- देवर्षि भी कई हैं और नारद भी कई हैं; पर 'देवर्षि नारद' एक ही हैं। ये भगवान्के मनके अनुसार चलते हैं और भगवान्को जैसी लीला करनी होती है? ये पहलेसे ही वैसी भूमिका तैयार कर देते हैं। इसलिये नारदजीको भगवान्का मन कहा गया है। ये सदा वीणा लेकर भगवान्के गुण गाते हुए घूमते रहते हैं। वाल्मीकि और व्यासजीको उपदेश देकर उनको रामायण और भागवत-जैसे ग्रन्थोंके लेखन-कार्यमें प्रवृत्त करानेवाले भी नारदजी ही हैं। नारदजीकी बातपर मनुष्य, देवता, असुर, नाग आदि सभी विश्वास करते हैं। सभी इनकी बात मानते हैं और इनसे सलाह लेते हैं। महाभारत आदि ग्रन्थोंमें इनके अनेक गुणोंका वर्णन किया गया है। यहाँ भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है। 'गन्धर्वाणां चित्ररथः'--स्वर्गके गायकोंको गन्धर्व कहते हैं और उन सभी गन्धर्वोंमें चित्ररथ मुख्य हैं। अर्जुनके साथ इनकी मित्रता रही और इनसे ही अर्जुनने गानविद्या सीखी थी। गानविद्यामें अत्यन्त निपुण और गन्धर्वोंमें मुख्य होनेसे भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है। 'सिद्धानां कपिलो मुनिः'--सिद्ध दो तरहके होते हैं--एक तो साधन करके सिद्ध बनते हैं और दूसरे जन्मजात सिद्ध होते हैं। कपिलजी जन्मजात सिद्ध हैं और इनको आदिसिद्ध कहा जाता है। ये कर्दमजीके यहाँ देवहूतिके गर्भसे प्रकट हुए थे। ये सांख्यके आचार्य और सम्पूर्ण सिद्धोंके गणाधीश हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।इन सब विभूतियोंमें जो विलक्षणता प्रतीत होती है, वह मूलतः, तत्त्वतः भगवान्की ही है। अतः साधककी,दृष्टि भगवान्में ही रहनी चाहिये।
Swami Tejomayananda
।।10.26।। मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) हूँ और देवर्षियों में नारद हूँ; मैं गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ।।
📜 Sanskrit Commentaries
Sri Madhavacharya
।।10.26 -- 10.27।।सुखरूपः पाल्यते लीयते च जगदनेनेति कपिलः।प्रीतिः सुखं कमानन्दः इत्यभिधानात् प्राणो ब्रह्म कं ब्रह्म खं ब्रह्म [छां.उ.4।10।5] इति च। ऋषिं प्रसूतं कपिलं यस्तमग्रे ज्ञानैर्बिभर्ति (ज्ञा) जायमानं च पश्येत् [श्वे.उ.5।2] सुखादनन्तात्पालनाल्लीयनाच्च यं वै देवं कपिलमुदाहरन्ति इति (सामवेदे) बाभ्रव्यशाखायाम्।
Sri Anandgiri
।।10.26।।सर्ववृक्षाणामित्यत्र सर्वशब्देन वनस्पतयो गृह्यन्ते।
Sri Vallabhacharya
।।10.26।।अश्वत्थ इति। वैष्णवोऽयं ध्येयः पूज्यश्च। देवर्षीणां नारदोऽहं महाभागवतो मर्यादापुष्टिरसिकः। गन्धर्वाणां मध्ये चित्ररथो गायको वैष्णवत्वाच्चिन्तनीयः। कपिलस्तु भगवदवतारःसाङ्ख्यतत्त्ववक्तापुष्टिसर्गप्रणेता भगवद्विभूतिः।
Sridhara Swami
।।10.26।।अश्वत्थ इति। देवा एव सन्तो मन्त्रदर्शनेन य ऋषित्वं प्राप्तास्तेषां मध्ये नारदोऽस्मि। सिद्धानामुत्पत्तित एवाधिगतपरमार्थतत्त्वानां मध्ये कपिलाख्यो मुनिरस्मि।