Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 3 — Meaning & Life Application
Sanskrit Shloka (Original)
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् | व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ||१-३||
Transliteration
paśyaitāṃ pāṇḍuputrāṇāmācārya mahatīṃ camūm . vyūḍhāṃ drupadaputreṇa tava śiṣyeṇa dhīmatā ||1-3||
Word-by-Word Meaning
📖 Translation
1.3. "Behold, O Teacher! this mighty army of the sons of Pandu, arrayed by the son of Drupada, thy wise disciple.
।।1.3।।हे आचार्य ! आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र (धृष्टद्द्युम्न) द्वारा व्यूहाकार खड़ी की गयी पाण्डु पुत्रों की इस महती सेना को देखिये।
How to Apply This Verse in Modern Life
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Before embarking on a project or entering a competitive market, meticulously assess the strengths of competitors, the strategies of key players, and the overall landscape. Acknowledge potential challenges proactively to formulate robust strategies and avoid underestimation.
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To manage stress effectively, 'behold' your problems rather than avoiding them. Objectively assess the nature and scale of your challenges, identify their root causes ('leadership'), and understand their impact. This realistic appraisal is the first step to developing a plan and reducing anxiety.
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Recognize that current relational dynamics, especially in conflict, are often shaped by a complex history of past interactions, loyalties, and mentorships. Understanding these intricate layers helps navigate present conflicts with greater wisdom and empathy, even when old allies become new adversaries.
When to Chant/Recall This Verse
Solves These Life Problems
Key Message in One Line
“Objectively assess challenges, acknowledge the strength and strategy of your 'opponents,' and understand complex relationships to prepare effectively.”
🕉️ Council of Sages
Compare interpretations from revered Acharyas and scholars
🌍 English Interpretations
Swami Sivananda
1.3 पश्य behold? एताम् this? पाण्डुपुत्राणाम् of the sons of Pandu? आचार्य O Teacher? महतीम् great? चमूम् army? व्यूढाम् arrayed? द्रुपदपुत्रेण son of Drupada? तव शिष्येण by your disciple? धीमता wise.No Commentary.
Shri Purohit Swami
1.3 Revered Father! Behold this mighty host of the Pandavas, paraded by the son of King Drupada, thy wise disciple.
Dr. S. Sankaranarayan
1.3. O teacher ! Behold this mighty army of the sons of Pandu, marshalled in a military array by Drupada's son, your intelligent pupil.
Swami Adidevananda
1.3 Behold, O teacher, this mighty army of the Pandavas, arrayed by the son of Drupada, your intelligent disciple.
Swami Gambirananda
1.3 O teacher, (please) see this vast army of the sons of Pandu, arrayed for battle by the son of Drupada, your intelligent disciple.
🇮🇳 Hindi Interpretations
Swami Chinmayananda
।।1.3।। वास्तव में दुर्योधन की यह मूर्खता है कि वह द्रोणाचार्य को पाण्डवों की सैन्य रचना के विषय में विस्तार से बताये। आगे हम देखेंगे कि वह आवश्यकता से अधिक बातें करता है जो युद्ध के परिणाम के विषय में उसके संदेह का स्पष्ट लक्षण है।
Swami Ramsukhdas
1.3।। व्याख्या--'आचार्य' द्रोणके लिये 'आचार्य' सम्बोधन देनेमें दुर्योधनका यह भाव मालूम देता है कि आप हम सबके--कौरवों और पाण्डवों के आचार्य हैं। शस्त्रविद्या सिखानेवाले होनेसे आप सबके गुरु हैं। इसलिये आपके मनमें किसीका पक्ष या आग्रह नहीं होना चाहिये। 'तव शिष्येण धीमता'--इन पदोंका प्रयोग करनेमें दुर्योधनका भाव यह है कि आप इतने सरल हैं कि अपने मारनेके लिये पैदा होनेवाले धृष्टद्युम्नको भी आपने अस्त्र-शस्त्रकी विद्या सिखायी है; और वह आपका शिष्य धृष्टद्युम्न इतना बुद्धिमान है कि उसने आपको मारनेके लिये आपसे ही अस्त्र-शस्त्रकी विद्या सीखी है।'द्रुपदपुत्रेण'--यह पद कहनेका आशय है कि आपको मारनेके उद्देश्यको लेकर ही द्रुपदने याज और उपयाज नामक ब्राह्मणोंसे यज्ञ कराया, जिससे धृष्टद्युम्न पैदा हुआ। वही यह द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न आपके सामने (प्रतिपक्षमें) सेनापतिके रूपमें खड़ा है।यद्यपि दुर्योधन यहाँ 'द्रुपदपुत्र' के स्थानपर 'धृष्टद्युम्न' भी कह सकता था, तथापि द्रोणाचार्यके साथ द्रुपद जो वैर रखता था, उस वैरभावको याद दिलानेके लिये दुर्योधन यहाँ 'द्रुपदपुत्रेण' शब्दका प्रयोग करता है कि अब वैर निकालनेका अच्छा मौका है।'पाण्डुपुत्राणाम् एतां व्यूढां महतीं चमूं पश्य'--द्रुपदपुत्रके द्वारा पाण्डवोंकी इस व्यूहाकार खड़ी हुई बड़ी भारी सेनाको देखिये। तात्पर्य है कि जिन पाण्डवोंपर आप स्नेह रखते हैं, उन्हीं पाण्डवोंने आपके प्रतिपक्षमें खास आपको मारनेवाले द्रुपदपुत्रको सेनापति बनाकर व्यूह-रचना करनेका अधिकार दिया है। अगर पाण्डव आपसे स्नेह रखते तो कम-से-कम आपको मारनेवालेको तो अपनी सेनाका मुख्य सेनापति नहीं बनाते, इतना अधिकार तो नहीं देते। परन्तु सब कुछ जानते हुए भी उन्होंने उसीको सेनापति बनाया है।यद्यपि कौरवोंकी अपेक्षा पाण्डवोंकी सेना संख्यामें कम थी अर्थात् कौरवोंकी सेना ग्यारह अक्षौहिणी (टिप्पणी प0 5) और पाण्डवोंकी सेना सात अक्षौहिणी थी, तथापि दुर्योधन पाण्डवोंकी सेनाको बड़ी भारी बता रहा है। पाण्डवोंकी सेनाको बड़ी भारी कहनेमें दो भाव मालूम देते हैं-- (1) पाण्डवोंकी सेना ऐसे ढंगसे व्यूहाकार खड़ी हुई थी, जिससे दुर्योधनको थोड़ी सेना भी बहुत ब़ड़ी दीख रही थी और (2) पाण्डव-सेनामें सब-के-सब योद्धा एक मतके थे। इस एकताके कारण पाण्डवोंकी थोड़ी सेना भी बलमें, उत्साहमें बड़ी मालूम दे रही थी। ऐसी सेनाको दिखाकर दुर्योधन द्रोणाचार्यसे यह कहना चाहता है कि युद्ध करते समय आप इस सेनाको सामान्य और छोटी न समझें। आप विशेष बल लगाकर सावधानीसे युद्ध करें।पाण्डवोंका सेनापति है तो आपका शिष्य द्रुपदपुत्र ही; अतः उसपर विजय करना आपके लिये कौन-सी बड़ी बात है!'एतां पश्य' कहनेका तात्पर्य है कि यह पाण्डव-सेना युद्धके लिये तैयार होकर सामने खड़ी है। अतः हमलोग इस सेनापर किस तरहसे विजय कर सकते हैं--इस विषयमें आपको जल्दी-से-जल्दी निर्णय लेना चाहिये।सम्बन्ध--द्रोणाचार्यसे पाण्डवोंकी सेना देखनेके लिये प्रार्थना करके अब दुर्योधन उन्हें पाण्डव-सेनाके महारथियोंको दिखाता है।
Swami Tejomayananda
।।1.3।।हे आचार्य ! आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र (धृष्टद्द्युम्न) द्वारा व्यूहाकार खड़ी की गयी पाण्डु पुत्रों की इस महती सेना को देखिये।
📜 Sanskrit Commentaries
Sri Madhavacharya
।।1.3।।Sri Madhvacharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.11.
Sri Anandgiri
।।1.3।।तदेव वचनमुदाहरति पश्येति। एतामस्मदभ्याशे महापुरुषानपि भवत्प्रमुखानपरिगणय्य भयलेशशून्यामवस्थितां चमूमिमां सेनां पाण्डुपुत्रैर्युधिष्ठिरादिभिरानीतां महतीमनेकाक्षौहिणीसहितामक्षोभ्यां पश्येत्याचार्यं दुर्योधनो नियुङ्क्ते नियोगद्वारा च तस्मिन्परेषामवज्ञां विज्ञापयन्क्रोधातिरेकमुत्पादयितुमुत्सहते। परकीयसेनाया वैशिष्ट्याभिधानद्वारा परापरपक्षेऽपि त्वदीयमेव बलमिति सूचयन्नाचार्यस्य तन्निरसनं सुकरमिति मन्वानः सन्नाह व्यूढामिति। राज्ञो द्रुपदस्य पुत्रस्तव शिष्यो धृष्टद्युम्नो लोके ख्यातिमुपगतः स्वयं च शस्त्रास्त्रविद्यासंपन्नो महामहिमा तेन व्यूहमापाद्याधिष्ठितामिमां चमूं किमिति न प्रतिपद्यसे किमिति वा मृष्यसीत्यर्थः।
Sri Vallabhacharya
।।1.2 1.11।।दुर्योधनोऽपि वृकोदरादिभी रक्षितं पाण्डवानां बलं भीष्माभिरक्षितं स्वीयं च बलं विलोक्य आत्मजविजये तद्बलस्य पर्याप्ततां आत्मबलस्य तद्बिजयेऽपर्याप्ततां च आचार्ये निवेद्यान्तरेव विष्ण्णोऽभूत्।
Sridhara Swami
।।1.3।। तदेव वाक्यमाह पश्यैतामित्यादिनवभिः श्लोकैः। भो आचार्य पाण्डवानां विततां चमूं सेनां पश्य। द्रुपदपुत्रेण धृष्टद्युम्नेन व्यूढां व्यूहरचनया अधिष्ठिताम्।