Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 12 — Meaning & Life Application

Source: Bhagavad GitaTheme: Leadership & Motivation

Sanskrit Shloka (Original)

तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः | सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान् ||१-१२||

Transliteration

tasya sañjanayanharṣaṃ kuruvṛddhaḥ pitāmahaḥ . siṃhanādaṃ vinadyoccaiḥ śaṅkhaṃ dadhmau pratāpavān ||1-12||

Word-by-Word Meaning

तस्यhis (Duryodhanas)
संजयन्causing
हर्षम्joy
कुरुवृद्धःoldest of the Kurus
पितामहःgrandfather
सिंहनादम्lions roar
विनद्यhaving sounded
उच्चैःloudly
शङ्खम्conch
दध्मौblew
प्रतापवान्the glorious.No Commentary.

📖 Translation

English

1.12. His glorious grandsire (Bhishma), the oldest of the Kauravas, in order to cheer Duryodhana, now roared like a lion, and blew his conch.

🇮🇳 हिंदी अनुवाद

।।1.12।।उस समय कौरवों में वृद्ध, प्रतापी पितामह भीष्म ने उस (दुर्योधन) के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुये उच्च स्वर में गरज कर शंखध्वनि की।

How to Apply This Verse in Modern Life

💼 At Work & Career

In leadership roles, especially during challenging projects or competitive situations, emulate Bhishma by projecting confidence, taking decisive action, and clearly communicating a strong vision to rally your team and boost morale. A strong, public display of commitment can inspire others and set a powerful tone.

🧘 For Stress & Anxiety

When facing overwhelming personal or professional challenges, consciously choose to project an outward demeanor of courage and determination. This 'lion's roar' can not only mentally steel your own resolve, helping you confront fear, but also deter negative influences and signify your readiness to tackle the situation head-on.

❤️ In Relationships

In supporting a friend, family member, or partner through a difficult time, be their 'glorious grandsire'. Offer steadfast, vocal encouragement and a visible show of solidarity, even if you have reservations about their specific choices. Your unwavering, confident presence can be their greatest source of strength and confidence.

When to Chant/Recall This Verse

Solves These Life Problems

Key Message in One Line

A leader's decisive action and powerful projection of strength are vital to inspire confidence, rally morale, and prepare for confrontation.

🕉️ Council of Sages

Compare interpretations from revered Acharyas and scholars

🌍 English Interpretations

Swami Sivananda

1.12 तस्य his (Duryodhanas)? संजयन् causing? हर्षम् joy? कुरुवृद्धः oldest of the Kurus? पितामहः grandfather? सिंहनादम् lions roar? विनद्य having sounded? उच्चैः loudly? शङ्खम् conch? दध्मौ blew? प्रतापवान् the glorious.No Commentary.

Shri Purohit Swami

1.12 Then to enliven his spirits, the brave Grandfather Bheeshma, eldest of the Kuru-clan, blew his conch, till it sounded like a lion's roar.

Dr. S. Sankaranarayan

1.12. Generating joy in him, the powerful paternal grandfather (Bhisma), the seniormost among the Kurus, roared highly a lion-roar and blew his conchshell.

Swami Adidevananda

1.12 Then the valiant grandsire Bhisma, seniormost of the Kuru clan, roaring like a lion, blew his conch with a view to cheer up Duryodhana.

Swami Gambirananda

1.12 The valiant grandfather, the eldest of the Kurus, loudly sounding a lion-roar, blew the conch to raise his (Duryodhana's) spirits.

🇮🇳 Hindi Interpretations

Swami Chinmayananda

।।1.12।। दुर्योधन की मूर्खतापूर्ण वाचालता के कारण उसकी सेना के योद्धाओं की स्थिति बड़ी विचित्र सी हो रही थी। उन पर भी उदासी का प्रभाव प्रकट होने लगा जिसे भीष्म वहीं निकट खड़े देख रहे थे। भीष्म पितामह ने कर्मशील द्रोणाचार्य के मौन में छिपे क्रोध को समझ लिया। उन्होंने यह जाना कि इन सबको इस मनस्थिति से बाहर निकालने की आवश्यकता है अन्यथा स्थिति को इसी प्रकार छोड़ देने पर आसन्न युद्ध के समय योद्धागण प्रभावहीन हो जायेंगे। योद्धाओं के इस मनोभाव को समझते हुये सेनापति भीष्म पितामह ने दुर्योधन के साथ सभी सैनिकों के मन में हर्ष और विश्वास की तरंगें उत्पन्न करने के लिये पूरी शक्ति से शंखनाद किया।यद्यपि भीष्माचार्य का यह शंखनाद दुर्योधन के प्रति करुणा से प्रेरित था तथापि उसका अर्थ युद्धारम्भ की घोषणा करने वाला सिद्ध हुआ जैसे कि आधुनिक युद्धों में पहली गोली चलाकर युद्ध प्ररम्भ होता है। शंख के इस सिंहनाद के साथ महाभारत के युद्ध का प्रारम्भ हुआ और इतिहास की दृष्टि से कौरव ही आक्रमणकारी सिद्ध होते हैं।

Swami Ramsukhdas

।।1.12।। व्याख्या--'तस्य संजनयन् हर्षम्'-- यद्यपि दुर्योधनके हृदयमें हर्ष होना शंखध्वनिका कार्य है और शंखध्वनि कारण है, इसलिये यहाँ शंखध्वनिका वर्णन पहले और हर्ष होनेका वर्णन पीछे होना चाहिये अर्थात् यहाँ 'शंख बजाते हुए दुर्योधनको हर्षित किया'--ऐसा कहा जाना चाहिये। परन्तु यहाँ ऐसा न कहकर यही कहा है कि 'दुर्योधनको हर्षित करते हुये भीष्मजीने शंख बजाया'। कारण कि ऐसा कहकर सञ्जय यह भाव प्रकट कर रहे हैं कि पितामह भीष्मकी शंखवादन क्रियामात्रसे दुर्योधनके हृदयमें हर्ष उत्पन्न हो ही जायगा। भीष्मजीके इस प्रभावको द्योतन करनेके लिये ही सञ्जय आगे  'प्रतापवान्'  विशेषण देते हैं।  'कुरुवृद्धः'-- यद्यपि कुरुवंशियोंमें आयुकी दृष्टिसे भीष्मजीसे भी अधिक वृद्ध बाह्लीक थे (जो कि भीष्मजीके पिता शान्तनुके छोटे भाई थे), तथापि कुरुवंशियोंमें जितने बड़े-बूढ़े थे, उन सबमें भीष्मजी धर्म और ईश्वरको विशेषतासे जाननेवाले थे। अतः ज्ञानवृद्ध होनेके कारण सञ्जय भीष्मजीके लिये 'कुरुवृद्धः' विशेषण देते हैं।  'प्रतापवान्'-- भीष्मजीके त्यागका बड़ा प्रभाव था। वे कनक-कामिनीके त्यागी थे अर्थात् उन्होंने राज्य भी स्वीकार नहीं किया और विवाह भी नहीं किया। भीष्मजी अस्त्र-शस्त्रको चलानेमें बड़े निपुण थे और शास्त्रके भी बड़े जानकार थे। उनके इन दोनों गुणोंका भी लोगोंपर बड़ा प्रभाव था। जब अकेले भीष्म अपने भाई विचित्रवीर्यके लिये काशिराजकी कन्याओंको स्वयंवरसे हरकर ला रहे थे तब वहाँ स्वयंवरके लिये इकट्ठे हुए सब क्षत्रिय उनपर टूट पड़े। परन्तु अकेले भीष्मजीने उन सबको हरा दिया। जिनसे भीष्म अस्त्र-शस्त्रकी विद्या पढ़े थे, उन गुरु परशुरामजीके सामने भी उन्होंने अपनी हार स्वीकार नहीं की। इस प्रकार शस्त्रके विषयमें उनका क्षत्रियोंपर बड़ा प्रभाव था। जब भीष्म शरशय्यापर सोये थे, तब भगवान् श्रीकृष्णने धर्मराजसे कहा कि 'आपको धर्मके विषयमें कोई शंका हो तो भीष्मजीसे पूछ लें; क्योंकि शास्त्रज्ञानका सूर्य अस्ताचलको जा रहा है अर्थात् भीष्मजी इस लोकसे जा रहे हैं  (टिप्पणी प0 11) ।'   इस प्रकार शास्त्रके विषयमें उनका दूसरोंपर बड़ा प्रभाव था।  'पितामहः' इस पदका आशय यह मालूम देता है कि दुर्योधनके द्वारा चालाकीसे कही गयी बातोंका द्रोणाचार्यने कोई उत्तर नहीं दिया। उन्होंने यही समझा कि दुर्योधन चालाकीसे मेरेको ठगना चाहता है इसलिये वे चुप ही रहे। परन्तु पितामह (दादा) होनेके नाते भीष्मजीको दुर्योधनकी चालाकीमें उसका बचपना दीखता है। अतः पितामह भीष्म द्रोणाचार्यके समान चुप न रहकर वात्सल्यभावके कारण दुर्योधनको हर्षित करते हुए शंख बजाते हैं।  'सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ'-- जैसे सिंहके गर्जना करनेपर हाथी आदि बड़े-बड़े पशु भी भयभीत हो जाते हैं ऐसे ही गर्जना करनेमात्रसे सभी भयभीत हो जायँ और दुर्योधन प्रसन्न हो जाय--इसी भावसे भीष्मजीने सिंहके समान गरजकर जोरसे शंख बजाया।  सम्बन्ध-- पितामह भीष्मके द्वारा शंख बजानेका परिणाम क्या हुआ इसको सञ्जय आगेके श्लोकमें कहते हैं।

Swami Tejomayananda

।।1.12।।उस समय कौरवों में वृद्ध, प्रतापी पितामह भीष्म ने उस (दुर्योधन) के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुये उच्च स्वर में गरज कर शंखध्वनि की।

📜 Sanskrit Commentaries

Sri Madhavacharya

।।1.12।।Sri Madhvacharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.11.

Sri Anandgiri

।।1.12।।तमेवमाचार्यंप्रति संवादं कुर्वन्तं भयाविष्टं राजानं दृष्ट्वा तदभ्याशवर्ती पितामहस्तद्बुद्ध्यनुरोधार्थमित्थं कृतवानित्याह  तस्येति।  राज्ञो दुर्योधनस्य हर्षं बुद्धिगतमुल्लासविशेषं परपरिभवद्वारा स्वकीयविजयद्वारकं सम्यगुत्पादयन् भयं तदीयमपनिनीपुरुच्चैः सिंहनादं कृत्वा शङ्खमापूरितवान्। किमिति दुर्योधनस्य हर्षमुत्पादयितुं पितामहो यतते कुरुवृद्धत्वात्तस्य कुरुराजत्वात् पितामहत्वाच्चास्य दुर्योधनभयापनयनार्था प्रवृत्तिरुचिता तदुपजीवितया तद्वशत्वाच्च तस्य च सिंहनादे शङ्खशब्दे च परेषां हृदयव्यथा संभाव्यते दूरादेवारिनिवहंप्रति भयजननलक्षणप्रतापत्वादित्यर्थः।

Sri Vallabhacharya

।।1.12 1.13।।ततस्तद्विषादमवलोक्य भीष्मस्तस्य हर्षं जनयितुं सिंहनादं शङ्खनादं च कृत्वा शङ्खभेरीनिनादैर्विजयाभिशंसकं घोषं चाकारयत्।

Sridhara Swami

।।1.12।।  तदेवं बहुमानयुक्तं राज्ञो दुर्योधनस्य वाक्यं श्रुत्वा भीष्मः किं कृतवांस्तदाह  तस्येति।  तस्य राज्ञः हर्षं संजनयन् कुर्वन् पितामहो भीष्म उच्चैर्महान्तं सिंहनादं कृत्वा शङ्खं दध्मौ वादितवान्।

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